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Mool Shanti Puja

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मूल शांति पूजन विधि

कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि किसी जातक के जन्म पर नामकरण,छठी आदि संस्कार में हवन,पूजन होता था,जिससे कि ग्रह,नक्षत्र ,योग आदि के कारण होनेवाली समस्याओं की शांति हो जाती थी परंतु आज की परिपेक्ष में नामकरण,छठी महज एक औपचारिकता ही रह गया है और हवन,पूजन तो अंधविश्वास हो गया है । फलस्वरूप आज समाज में विकृतियों का राज हो चला है । हम आधुनिकता के दौड़ में चलते तो अवश्य हैं और अपने को वैज्ञानिक युग का मानव बतलाते हैं किन्तु विज्ञान द्वारा प्रतिपादित सार्वभौमिक नियम जो कि बताती है कि सौर मण्डल में नवग्रह व सत्ताईस(२७) नक्षत्र है जो कि अपनी कक्ष के साथ सौर मण्डल की भी परिक्रमा करते हैं और जब यह ग्रह ,नक्षत्र परिक्रमा करते हैं तो उनका मानव जीवन में प्रभाव अवश्य पड़ता है,को भूल जाते हैं। इस विषय को हमारे धर्मग्रन्थों ने अनादि काल से बताया है कि जब किसी जातक का जन्म होता है तो उस समय पड़ने वाले ग्रह,नक्षत्र का प्रभाव जातक के जीवन में असर डालते हैं । अतः हमें पुरानी वैदिक परम्पराओं का जितना हो सके पालन करते चलना चाहिए । हमारे वैदिक ग्रन्थों के अनुसार सत्ताईस(२७) नक्षत्रों का जन्म दक्ष प्रजापति की पत्नी के गर्भ से और इनका विवाह चंद्रमा(सोम) से हुआ अतः इन्हें देवत्व संज्ञा प्राप्त है । इसलिए नक्षत्र देवताओं का पूजन ही नक्षत्र पूजन है । इनमे से छः(६) नक्षत्र को मूल संज्ञा की प्राप्ति है जो कि जातक के लिए अनिष्टकारी है । अतः इनकी शांति अवश्य करावें ताकि यह आपके संतान के लिए हितकर हो सके,क्योंकि जब हम अपने शत्रु के भी शरणागत हो जाते हैं तो वे भी हमें अभय दान कर देते हैं । वैसे तो मूल शांति पूजन विधि कर्म के विषय में अनेकों विद्वानों ने अपनी कृति लिखा है

 

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